हमारे सनातन धर्म में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा होती है और सर्वप्रथम आरती भी होती है। इसीलिए गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) का पाठ अहम हो जाता है। हम सभी को गणेश चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
यदि आप भी गणेश चालीसा का पाठ करना चाहते हैं लेकिन आपको यह नहीं पता है तो हम इस लेख में भगवान गणेश जी की चालीसा हिंदी अर्थ सहित बताएंगे, ताकी आप नियमित रूप से पाठ कर सकें।
Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi (अर्थ सहित)
|| दोहा ||
जय गणपति सद्गुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।
अर्थ : हे सभी गुणों से युक्त भगवान श्रीगणेश, सभी कवि भी आपको कृपा दृष्टि रखने वाला बताते हैं। आप हम सभी के कष्टों का निवारण कर हमारा भला करते हो। हे माता पार्वती के दुलारे, आपकी सदा जय हो।
|| चौपाई ||
जय जय जय गणपति गणराजू
मंगल भरण करण शुभः काजू॥१॥
अर्थ : हे सभी गणों के स्वामी, आप सभी कार्यों को मंगल कार्य में बदल देते हो, आप सभी का कल्याण करते हो, आपकी सदा जय हो, जय हो, जय हो।
जै गजबदन सदन सुखदाता
विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥२॥
अर्थ : हे भगवान गणेश! आपका शरीर हाथी के समान विशाल है, आपकी सदैव जय हो, आप हर घर में सुख व शांति प्रदान करते हो, आप संपूर्ण विश्व के विधाता हो, आप सभी को बुद्धि प्रदान करते हो।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावन
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥३॥
अर्थ : आपकी नाक हाथी के सूंड के समान मुड़ी हुई है जो कि हमारे मन को बहुत सुहाती है। आपके माथे पर लगा तीन धारियों वाला तिलक हर किसी के मन को मोहित कर देता है।
राजत मणि मुक्तन उर माला
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥४॥
अर्थ : आपकी छाती पर रत्नजड़ित मालाएं व आभूषण हैं, आपके सिर पर सोने का मुकुट है और आपकी आँखें भी बड़ी व विशाल है।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥५॥
अर्थ : आपके हाथों में पुस्तक, कुल्हाड़ी (फरसा) व त्रिशूल है तथा आपको मोदक व सुगन्धित फूलों का भोग लगाया जाता है।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित
चरण पादुका मुनि मन राजित॥६॥
अर्थ : आपने पीले रंग के वस्त्र धारण किये हुए हैं तथा आपके चरण इतने आकर्षक हैं कि ऋषि-मुनियों का मन भी इन्हें देखकर मोहित हो जाता है।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता
गौरी लालन विश्व विधाता॥७॥
अर्थ : हे भगवान शिव के पुत्र व भगवान कार्तिक के भाई! आप धन्य हैं। हे माँ पार्वती के पुत्र! आप विश्व के विधाता हैं।
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे
मुषक वाहन सोहत द्वारे॥८॥
अर्थ : आपकी पत्नियाँ ऋद्धि व सिद्धि सदैव आपकी सेवा में तत्पर रहती हैं तथा आपके दरवाजे पर आपका वाहन मूषक रहता है।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी
अति शुची पावन मंगलकारी॥९॥
अर्थ : हे प्रभु! आपके जन्म की अतिशुभ कथा सुनना व कहना हर किसी के लिए मंगलकारी है।
एक समय गिरिराज कुमारी
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥१०॥
अर्थ : एक समय पर्वत की पुत्री माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥११॥
अर्थ : जब उनकी तपस्या समाप्त हो गयी तब आप वहां ब्राह्मण का वेश बनाकर पहुंचे थे।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥१२॥
अर्थ : माता पार्वती ने आपका आतिथ्य-सत्कार किया व आपकी बहुत सेवा की।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥१३॥
अर्थ : माता पार्वती की सेवा से प्रसन्न होकर आपने उन्हें तपस्या के फलस्वरूप पुत्र होने का आशीर्वाद प्रदान किया।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला
बिना गर्भ धारण यहि काला॥१४॥
अर्थ : आपने माता पार्वती को बिना गर्भ धारण किये स्वयं को पुत्र रूप में प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया जिसकी बुद्धि बहुत ही विलक्षण होगी।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना
पूजित प्रथम रूप भगवाना॥१५॥
अर्थ : वह पुत्र सभी देवताओं का राजा होगा और गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा। इसके साथ ही सभी भगवानों में वह प्रथम पूजनीय होगा।
अस कही अन्तर्धान रूप हवै
पालना पर बालक स्वरूप हवै॥१६॥
अर्थ : माता पार्वती को यह आशीर्वाद देकर आप अंतर्धान हो गए तथा पालने में एक बालक स्वरुप में बदल गए।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥१७॥
अर्थ : माता पार्वती ने जैसे ही आपको उठाया, आपने एक शिशु की भांति रोना शुरू कर दिया। माता पार्वती ने आपके मुहं की ओर देखा जो कि सुख देने वाला था लेकिन आपका रूप उनके समान नही था।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥१८॥
अर्थ : आकाश से इस दृश्य को देखकर सभी देवतागण नृत्य और मंगलगान करने लगे तथा आकाश से फूलों की वर्षा शुरू हो गयी।
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥१९॥
अर्थ : भगवान शिव व माता पार्वती ने आपके जन्म के उपलक्ष्य में बहुत दान किया। आपको देखने देवता व ऋषि-मुनि आने लगे।
लखि अति आनन्द मंगल साजा
देखन भी आये शनि राजा॥२०॥
अर्थ : आपके दर्शन करके सभी देवताओं व मुनियों को बहुत ही आनंद आया तथा स्वयं शनि देव भी आपके दर्शन करने पहुंचे।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं
बालक, देखन चाहत नाहीं॥२१॥
अर्थ : साथ ही शनि देव को अपने अवगुणों के कारण आपको देखने का मन नही कर रहा था ताकि उनकी गलत छाया आप पर ना पड़े।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥२२॥
अर्थ : शनिदेव को भगवान गणेश से मुहं फेरता देखकर माता पार्वती के मन में संदेह उत्पन्न हुआ और उन्होंने शनि देव से कहा कि हमारे यहाँ पुत्र प्राप्ति के उत्सव से क्या तुम प्रसन्न नही हो।
कहत लगे शनि, मन सकुचाई
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥२३॥
अर्थ : यह सुनकर शनिदेव ने माता पार्वती से हिचकते हुए कहा कि मुझे शिशु को दिखाकर क्या करोगी क्योंकि इससे कुछ अनिष्ट हो जाएगा।
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ
शनि सों बालक देखन कहऊ॥२४॥
अर्थ : इस पर माता पार्वती को विश्वास नही हुआ और उन्होंने शनि देव को शिशु देखने को कहा।
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥२५॥
अर्थ : माता पार्वती के कहने पर जैसे ही शनि देव ने भगवान गणेश के शिशु रूप पर दृष्टि डाली, उसी समय शिशु का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥२६॥
अर्थ : अपने शिशु का सिर धड़ से अलग देखकर माता पार्वती इतनी व्याकुल हो उठी कि वे वहीं मूर्छित होकर नीचे गिर पड़ी। उनके दुःख को शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता है।
हाहाकार मच्यौ कैलाशा
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥२७॥
अर्थ : इस घटना से पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया और इसका दोष शनिदेव पर लगा कि उनके कारण यह सब हुआ है।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो
काटी चक्र सो गज सिर लायो॥२८॥
अर्थ : यह दृश्य देखकर उसी समय भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर वहां पहुंचे और अपने सुदर्शन चक्र से हाथी का सिर काटकर ले आये।
बालक के धड़ ऊपर धारयो
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥२९॥
अर्थ : भगवान विष्णु ने उस हाथी के सिर को उस शिशु के धड़ पर रखा और इसके बाद भगवान शिव ने मंत्रों इत्यादि को पढ़कर उसमे पुनः प्राण डाल दिए।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥३०॥
अर्थ : इसके पश्चात भगवान शिव ने आपका नाम गणेश रखा और आशीर्वाद दिया कि संपूर्ण जगत में सर्वप्रथम आपकी पूजा की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने आपको बुद्धि व निधि पाने का वरदान दिया।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥३१॥
अर्थ : इसके पश्चात भगवान शिव ने आपकी बुद्धि की परीक्षा लेनी चाही और आपको व भगवान कार्तिक को पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर आने को कहा।
चले षडानन, भरमि भुलाई
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥३२॥
अर्थ : इतना सुनते ही भगवान कार्तिक तुरंत अपने वाहन पर पृथ्वी का चक्कर लगाने निकल पड़े किंतु आपने बुद्धिमता से काम लिया।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥३३॥
अर्थ : आपने उसी समय अपने माता-पिता के चरण स्पर्श किये और उनके चारों ओर 7 बार प्रदक्षिणा कर डाली।
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥३४॥
अर्थ : आपकी बुद्धिमता को देखकर भगवान शिव का हृदय बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने आपकी प्रशंसा की तथा आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई
शेष सहसमुख सके न गाई॥३५॥
अर्थ : हे भगवान श्रीगणेश! आपकी बुद्धि का बखान तो हजारों मुख मिलकर भी नही कर सकते हैं।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥३६॥
अर्थ : हे भगवान श्रीगणेश!! मैं तो बुद्धिहीन हूँ, पापी हूँ, दुखी हूँ, मैं किस युक्ति से आपकी प्राथना करूँ।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥३७॥
अर्थ : मैं राम सुंदर आपका दास हूँ और आपके भजन करता हूँ। मेरा तो इस जगत में ककरा नामक गाँव है जहाँ से ऋषि दुर्वासा हुए हैं।
अब प्रभु दया दीना पर कीजै
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥३९॥
अर्थ : हे प्रभु! अपने इस दीन हीन भक्त पर कुछ दया दिखाइए, अपनी भक्ति व शक्ति मुझे दीजिए।
|| दोहा ||
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥
अर्थ : जो भी भक्तगण नियमित रूप से इस श्रीगणेश चालीसा का पाठ करता है, उसके घर में मंगल कार्य होते हैं तथा समाज में प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ती गणेश॥
अर्थ : हजारों संबंधों की पालना करते हुए, ऋषि पंचमी के दिन, आपकी यह गणेश चालीसा समाप्त हुई।
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