श्री सरस्वती चालीसा हिंदी अर्थ सहित | Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

श्री सरस्वती चालीसा (Saraswati Chalisa) माता सरस्वती को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शक्तिशाली प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है। ज्ञान और बुद्धि का विकास करने के लिए माता सरस्वती का चालीसा का पाठ बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है।

Saraswati Chalisa
Saraswati Chalisa

Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi (अर्थ सहित)

|| दोहा ||

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

अर्थ : माता-पिता के चरणों की धूल अपने माथे पर लगाकर अर्थात उन्हें नमस्कार कर आपकी वंदना शुरू करता हूँ। हे माँ सरस्वती!! आप मुझे बुद्धि व शक्ति प्रदान कीजिये।

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

अर्थ : आप तो इस सृष्टि में हर जगह फैली हुई हैं और आपकी महिमा का कोई अंत नहीं है। रामसागर (जो सरस्वती चालीसा के लेखक हैं) के पाप को अब आप ही हर सकती हैं।

|| चौपाई ||

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥१॥

अर्थ : हे बुद्धि व शक्ति की माता!! आपकी जय हो। आप सभी जगह वास करती हैं, आप अमर हैं और आपका विनाश नहीं किया जा सकता है, आपकी जय हो।

जय जय जय वीणाकर धारी
करती सदा सुहंस सवारी॥२॥

अर्थ : आप वीणा को धारण की हुई हो, आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आपका वाहन हंस है और आप सदैव उसी की ही सवारी करती हो।

रूप चतुर्भुज धारी माता
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥३॥

अर्थ : आपके चार हाथ हैं और आपका यह रूप पूरे विश्व में विख्यात है

जग में पाप बुद्धि जब होती
तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥४॥

अर्थ : जब कभी भी इस सृष्टि में पाप, दुष्टता की वृद्धि हो जाती है और धर्म की ज्योति फीकी पड़ने लगती है।

तब ही मातु का निज अवतारी
पाप हीन करती महतारी॥५॥

अर्थ : तब माता आप इस धरती पर अवतार लेकर पापियों का नाश कर देती हो और धर्म की पुनर्स्थापना करती हो।

वाल्मीकिजी थे हत्यारा
तव प्रसाद जानै संसारा॥६॥

अर्थ : त्रेता युग में महर्षि वाल्मीकि पहले एक डाकू व हत्यारे थे लेकिन आपके प्रभाव से उन्हें सद्बुद्धि आयी और वे धर्म का पालन करने लगे।

रामचरित जो रचे बनाई
आदि कवि की पदवी पाई॥७॥

अर्थ : आपकी कृपा से ही उन्होंने महान ग्रन्थ रामायण की रचना की और आदिकवि की पदवी पायी।

कालिदास जो भये विख्याता
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥८॥

अर्थ : कालिदास जी भी आपकी कृपा से ही इस सृष्टि में प्रसिद्ध हुए।

तुलसी सूर आदि विद्वाना
भये और जो ज्ञानी नाना॥९॥

अर्थ : तुलसीदास व सूरदास जी के ऊपर भी आपकी ही कृपा थी और उन्होंने ऐतिहासिक ग्रंथों तथा काव्यों की रचना की।

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा
केव कृपा आपकी अम्बा॥१०॥

अर्थ : उन्हें किसी और का सहारा नहीं था और आपने ही उन्हें विद्या व बुद्धि का सहारा दिया।

करहु कृपा सोइ मातु भवानी
दुखित दीन निज दासहि जानी॥११॥

अर्थ : हे माँ सरस्वती!! मुझे दीन दुखी और अपना सेवक मान कर मुझ पर भी कृपा कीजिये।

पुत्र करहिं अपराध बहूता
तेहि न धरई चित माता॥१२॥

अर्थ : अब संतान तो कई तरह के अपराध कर देती हैं लेकिन आप अपने इस पुत्र के अपराध को मन में ना बैठाएं।

राखु लाज जननि अब मेरी
विनय करउं भांति बहु तेरी॥१३॥

अर्थ : आप मेरे मान-सम्मान की रक्षा कीजिये और यही मेरी आपसे विनती है।

मैं अनाथ तेरी अवलंबा
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥१४॥

अर्थ : मैं अनाथ आपकी शरण में आया हूँ, हे मां जगदंबा अब आप मुझ पर कृपा कीजिये।

मधुकैटभ जो अति बलवाना
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥१५॥

अर्थ : मधु-कैटभ जो अत्यधिक शक्तिशाली राक्षस थे, उन्होंने अपने बाहुबल से भगवान विष्णु से युद्ध किया।

समर हजार पाँच में घोरा
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥१६॥

अर्थ : यह युद्ध पांच हज़ार वर्ष तक चला लेकिन फिर भी वे दोनों पराजित नहीं हुए।

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला
बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥१७॥

अर्थ : तब आपने ही अपनी शक्ति से श्रीहरि की सहायता की और उन दोनों की बुद्धि भ्रष्ट कर दी।

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥१८॥

अर्थ : इसके फलस्वरूप ही भगवान विष्णु उन दोनों को पराजित कर पाने में सक्षम हुए। अब आप मेरी मनोकामना भी पूरी कर दीजिये।

चंड मुण्ड जो थे विख्याता
क्षण महु संहारे उन माता॥१९॥

अर्थ : चंड-मुंड राक्षस जो अत्यधिक प्रसिद्ध थे, उन्हें भी आपने युद्ध में मार गिराया।

रक्त बीज से समरथ पापी
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥२०॥

अर्थ : रक्तबीज नामक राक्षस जिसके नाम से सभी देवता, ऋषि-मुनि भी भय खाते थे,

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा
बारबार बिन वउं जगदंबा॥२१॥

अर्थ : आपने उनका सिर काट कर उनका रक्त पी लिया और संहार कर दिया। मैं बार-बार आपसे ही प्रार्थना करता हूँ।

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥२२॥

अर्थ : आपने इस जगत के प्रसिद्ध राक्षस शुभ-निशुंभ का भी युद्ध क्षेत्र में संहार कर दिया था।

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई
रामचन्द्र बनवास कराई॥२३॥

अर्थ : जब राजा दशरथ अपने पुत्र भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक करने वाले थे तब आपने ही भरत की माता कैकयी की बुद्धि हर ली थी और वह मंथरा की बातों में आकर श्रीराम का चौदह वर्ष का वनवास माँग बैठी थी।

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥२४॥

अर्थ : वहीं दूसरी ओर, आपने दुष्ट रावण की भी बुद्धि हर ली थी और उसने माता सीता का हरण कर अपना ही वध करवा लिया था। उसके अंत से सभी देवता, मनुष्य व ऋषि-मुनि प्रसन्न हो गए थे।

को समरथ तव यश गुन गाना
निगम अनादि अनंत बखाना॥२५॥

अर्थ : आपका गुणगान तो इस सृष्टि में हर जगह किया जा रहा है और आपका कोई अंत नहीं है।

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥२६॥

अर्थ : जिसकी रक्षा स्वयं आप कर रही होती हैं, उसे तो स्वयं भगवान विष्णु व शिव भी नहीं मार सकते हैं।

रक्त दन्तिका और शताक्षी
नाम अपार है दानव भक्षी॥२७॥

अर्थ : रक्त दंतिका, शताक्षी तथा दानव भक्षी जैसे आपके कई नाम हैं।

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥२८॥

अर्थ : आपने वे काम भी करके दिखाएं जो दिखने में असंभव लगते थे, इसी कारण संपूर्ण जगत में आपका एक नाम दुर्गा भी प्रसिद्ध हो गया।

दुर्ग आदि हरनी तू माता
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥२९॥

अर्थ : आप हमारे सभी तरह के दुखों को दूर कर देती हैं और हम पर कृपा कर सुख प्रदान करती हैं।

नृप कोपित को मारन चाहे
कानन में घेरे मृग नाहे॥३०॥

अर्थ : यदि किसी व्यक्ति को वहां का राजा क्रोधित होकर मारना चाहे अर्थात वह राजनीति का शिकार हो जाए, यदि वह वन में खूंखार जानवरों से घिरा हुआ हो,

सागर मध्य पोत के भंजे
ति तूफान नहिं कोऊ संगे॥३१॥

अर्थ : समुंद्र के बीच में उसकी नाव फंस जाए, आंधी-तूफान में वह फंस जाए,

भूत प्रेत बाधा या दुःख में
हो दरिद्र अथवा संकट में॥३२॥

अर्थ : भूत-प्रेत-पिशाच उसे सताए या फिर उसे गरीबी या कोई अन्य संकट सता रहा हो,

नाम जपे मंगल सब होई
संशय इसमें करई न कोई॥३३॥

अर्थ : तो उस समय उसे माँ सरस्वती का नाम लेना चाहिए। इससे उसके सभी तरह के संकट एक झटके में ही दूर हो जाएंगे। इस बात में किसी को शक नहीं करना चाहिए।

पुत्रहीन जो आतुर भाई
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥३४॥

अर्थ : यदि किसी व्यक्ति को पुत्र प्राप्ति नहीं हो रही है तो उसे सब कुछ भूल कर माँ सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।

करै पाठ नित यह चालीसा
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥३५॥

अर्थ : जो भी इस सरस्वती चालीसा का प्रतिदिन पाठ करता है, उसे माँ अवश्य ही सुन्दर सा पुत्र प्रदान करती हैं।

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै
संकट रहित अवश्य हो जावै॥३६॥

अर्थ : जो भी मातारानी को धूप, दीप व नैवेद्य चढ़ाता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं।

भक्ति मातु की करैं हमेशा
निकट न आवै ताहि कलेशा॥३७॥

अर्थ : जो मनुष्य नित्य रूप से मातारानी की भक्ति करता है, उसके पास किसी तरह का संकट नहीं आता है और वह सुख को प्राप्त करता है।

बंदी पाठ करें सत बारा
बंदी पाश दूर हो सारा॥३८॥

अर्थ : यदि कोई व्यक्ति कारावास में बंद है तो उसे सौ बार सरस्वती जी की चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे उसकी बंदी टूट जाती है और वह स्वतंत्र हो जाता है।

रामसागर बाँधि हेतु भवानी
कीजै कृपा दास निज जानी॥३९॥

अर्थ : रामसागर जी आपसे यही प्रार्थना करते है कि अब आप ही मुझे अपना दास समझ कर मुझपर कृपा कीजिये।

|| दोहा ||

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप ।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप ॥

अर्थ : हे माँ सरस्वती!! आपका रूप सूर्य के तेज के समान प्रकाशमय है जबकि मेरा रूप तो अंधकार से घिरा हुआ है अर्थात मुझमें विद्या व बुद्धि का अभाव है। आप मुझे भवसागर में डूबने से बचा लीजिये और मेरी रक्षा कीजिये ताकि मैं इसे पार कर सकूं।

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु ।
रामसागर अधम को आश्रय तू ही देदातु ॥

अर्थ : हे माँ सरस्वती!! कृपा करके मेरी पुकार सुनिए, मुझे बल, बुद्धि व विद्या प्रदान कीजिये और रामसागर को अपना आश्रय प्रदान कीजिए।

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