श्री शनि चालीसा (Shani Chalisa) शनि देव की चालीस छंदों की प्रार्थना है। इस प्रार्थना में शनि देव के अनेक कार्यों और गुणों की स्तुति की जाती है। हमारे सनातन धर्म में शनि देव को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि देव की उपासना करने से साधक को विशेष लाभ प्राप्त होता है। शनिवार का दिन शनि देव की उपासना के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन शनि चालीसा का अवश्य करना चाहिए।
Shani Chalisa Lyrics in Hindi (अर्थ सहित)
|| दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
अर्थ : हे गिरिजासूत गणेश! आपकी जय हो! आप मंगल करने एवं कृपा करने वाले है। हे नाथ! दीन जनों के दुख दूर करके उन्हें प्रसन्नता प्रदान करें।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
अर्थ : हे शनिदेव! आपकी जय हो! हे सूर्य पुत्र! आप मेरी विनय सुनकर कृपा कीजिए और लोगो की लज्जा की रक्षा कीजिए।
|| चौपाई ||
जयति जयति शनिदेव दयाला
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥१॥
अर्थ : हे दयासिंधु शनिदेव! आपकी जय हो! जय हो! आप सदैव भक्तों की पालना करते हैं।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥२॥
अर्थ : आपकी चार भुजाएं हैं, शरीर पर श्यामलता शोभा दे रही है, मस्तक पर रत्न-जड़ित मुकुट आभायमान है।
परम विशाल मनोहर भाला
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥३॥
अर्थ : आपका मस्तक विशाल एवं मन को मोहने वाला है। आपकी दृष्टि टेढ़ी (वक्र) और भौंहें विकराल हैं।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥४॥
अर्थ : आपके कानों में कुंडल चमक रहे हैं तथा छाती पर मोतियों तथा मणियों की माला शोभायमान है।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥५॥
अर्थ : आपके हाथों में गदा, त्रिशूल और कुठार शोभा दे रहे हैं। आप पलभर में ही शत्रुओं का संहार कर देते हैं।
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥६॥
अर्थ : आप दुखों का विनाश करने वाले पिंगल, कृष्ण, छायानंदन, यम, कोणस्थ और रौद्र हैं ।
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥७॥
अर्थ : सौरि, मंद, शनि और सूर्यपुत्र आदि आपके दस नाम हैं। इन नामों का जाप करने से सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥८॥
अर्थ : हे प्रभु! आप जिस पर प्रसन्न हो जाएं उस निर्धन को पलक झपकते राजा बना देते हैं।
पर्वतहू तृण होई निहारत
तृणहू को पर्वत करि डारत॥९॥
अर्थ : आपकी दृष्टि पड़ते ही पर्वत तिनके जैसा हो जाता है तथा आप चाहें तो तिनके को भी पर्वत बना सकते हैं।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥१०॥
अर्थ : जब श्रीराम का राज्याभिषेक होने जा रहा था, तब आपने कैकयी की मति भ्रस्ट कर प्रभु राम को वन में भेज दिया।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई
मातु जानकी गई चुराई॥११॥
अर्थ : आपने ही वन में माया-मृग(सोने का हिरण) की रचना की थी जो सीता माता के अपहरण का कारण बना।
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा
मचिगा दल में हाहाकारा॥१२॥
अर्थ : शक्ति प्रहार से आपने लक्ष्मण को व्यथित कर दिया तो उससे श्रीराम की सेना में चिंता की लहर दौर गयी थी।
रावण की गति-मति बौराई
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥१३॥
अर्थ : आपने रावण जैसे महापंडित की बुद्धि कुंठित कर दी थी, इसी कारण वह श्रीराम से बैर मोल ले बैठा।
दियो कीट करि कंचन लंका
बजि बजरंग बीर की डंका॥१४॥
अर्थ : सोने की लंका को आपने मिट्टी में मिलाकर तहस-नहस कर दिया और हनुमान जी के गौरव में वृद्धि की।
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥१५॥
अर्थ : राजा विक्रमादित्य पर जब आपकी दशा आई तो दीवार पर टंगा मोर का चित्र रानी का हार निगल गया।
हार नौलखा लाग्यो चोरी
हाथ पैर डरवायो तोरी॥१६॥
अर्थ : उस नौलखा हार की चोरी का आरोप विकामदित्य पर लगने के कारण उसे अपने हाथ-पैर तुड़वाने पड़े थे।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥१७॥
अर्थ : विक्रमादित्य की दशा इतनी निकृष्ट हो गयी कि उन्हे तेली के घर में कोल्हू तक चलाना पड़ा।
विनय राग दीपक महं कीन्हयों
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥१८॥
अर्थ : जब उन्होने राग दीपक में आपसे विनती की, तब आपने प्रसन्न होकर उन्हे पुनः सुख प्रदान कर दिया।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी
आपहुं भरे डोम घर पानी॥१९॥
अर्थ : जब आपकी कुदृष्टि राजा हरिश्चंद्र पर पड़ी तो उन्हें अपनी पत्नी को बेचना पड़ा और डोम के घर पानी भरना पड़ा।
तैसे नल पर दशा सिरानी
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥२०॥
अर्थ : राजा नल पर जब आपकी टेढ़ी दृष्टि पड़ी तो भुनी हुई मछली भी पानी में कूद गयी।
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई
पारवती को सती कराई॥२१॥
अर्थ : भगवान शंकर पर आपकी वक्र दृष्टि पड़ी तो उनकी पत्नी पार्वती को हवन कुंड में जलकर भस्म होना पड़ा।
तनिक विलोकत ही करि रीसा
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥२२॥
अर्थ : गौरी-पुत्र गणेश को अल्प क्रोधित दृष्टि से जब आपने देखा तो उनका सिर कटकर आकाश में उड़ गया।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी
बची द्रौपदी होति उघारी॥२३॥
अर्थ : जब पांडु पुत्रों (पांडव) पर आपकी दशा आई तो भरी सभा में उनकी पत्नी द्रौपदी का चीर-हरण हुआ।
कौरव के भी गति मति मारयो
युद्ध महाभारत करि डारयो॥२४॥
अर्थ : आपने कौरवों की बुद्धि का हरण किया जिससे विवेकहीन होकर वे महाभारत का भयंकर युद्ध कर बैठे।
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला
लेकर कूदि परयो पाताला॥२५॥
अर्थ : देखते-ही-देखते सूर्यदेव को अपने मुख में डालकर आप पाताल लोक को प्रस्थान कर गए।
शेष देव-लखि विनती लाई
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥२६॥
अर्थ : जब सभी देवताओं ने आपसे विनय की, तब आपने सूर्य को अपने मुख से बाहर निकाला।
वाहन प्रभु के सात सुजाना
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥२७॥
अर्थ : यह सर्वविदित है कि आपके पास सात प्रकार के वाहन हैं- हाथी, घोडा, हिरण, कुत्ता, गधा…
जम्बुक सिंह आदि नख धारी
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥२८॥
अर्थ : …सियार और शेर। इन सभी वाहनों के फल विभिन्न ज्योतिषियों द्वारा अलग-अलग बताए गए हैं।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥२९॥
अर्थ : हाथी यदि वाहन हो तो घर में लक्ष्मी का आगमन होता है और घोड़े के वाहन से घर में सुख-संपत्ति बढ़ती है।
गर्दभ हानि करै बहु काजा
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥३०॥
अर्थ : गधा वाहन हो तो हानि तथा सारे काम बिगड़ जाते हैं। सिंह की सवारी से राज-समाज में सिद्धि की प्राप्ति होती है।
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥३१॥
अर्थ : सियार यदि वाहन हो तो बुद्धि नष्ट होती है और मृग वाहन दुख देकर प्राणों का संहार आर देता है।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी
चोरी आदि होय डर भारी॥३२॥
अर्थ : जब प्रभु कुत्ते को वाहन बनाकर आते हैं, तब चोरी आदि होती है, साथ ही भय भी बना रहता है।
तैसहि चारि चरण यह नामा
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥३३॥
अर्थ : इसी प्रकार शिशु का चरण (पैर) देखा जाता है। यह 4 प्रकार (सोना, चाँदी, लोहा तथा तांबा) के होते हैं।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥३४॥
अर्थ : जब प्रभु लोहे के चरण पर आते हैं, तब धन, जन और संपत्ति आदि सबकुछ विनष्ट कर देते हैं।
समता ताम्र रजत शुभकारी
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥३५॥
अर्थ : तांबे और चाँदी के पैर समान शुभकारी हैं। परंतु सोने का पैर सभी सुख प्रदान करके सर्वथा मंगलकारी है।
जो यह शनि चरित्र नित गावै
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥३६॥
अर्थ : जो भी व्यक्ति इस शनि-चरित का नित्य पाठ करता है उसे बुरी दशा कभी नहीं सताती।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥३७॥
अर्थ : प्रभु हैरान कर देने वाली लीलाएं दिखाते हैं और शत्रुओं का बल नष्ट कर देते हैं।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥३८॥
अर्थ : जो कोई भी योग्य पंडित को बुलवाकर शनि ग्रह की शांति करवाता है…
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत
दीप दान दै बहु सुख पावत॥३९॥
अर्थ : …शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल अर्पित कर दीया जलाता है उसे अनेक प्रकार के सुख मिलते हैं।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥४०॥
अर्थ : प्रभु सेवक रामसुंदरजी कहते हैं कि शनिदेव का ध्यान करते ही सुख-रूपी प्रकाश फैल जाता है।
|| दोहा ||
पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
अर्थ : भक्त द्वारा तैयार इस शनि देव चालीसा का चालीस दिन तक पाठ करने से भवसागर पार किया जा सकता है।
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