महामृत्युंजय मंत्र (मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र) जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है। यह महान मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है। इस मन्त्र में शिव को ‘मृत्यु को जीतने वाला’ बताया गया है। यह गायत्री मंत्र के समकक्ष सनातन धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मन्त्र है।
Mahamrityunjaya Mantra Lyrics in Hindi (अर्थ सहित)
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
अर्थ : हम त्रिनेत्रों वाले भगवान शिव का चिन्तन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करते हैं और (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धि करते हैं । ककड़ी जिस तरह तने से अलग हो जाती है उसी प्रकार हम मृत्यु से मुक्त हो जाएं, और अमरत्व (मोक्ष के आनन्द) से वंचित न रहें।
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महामृत्युञ्जय मन्त्र की कथा
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति के बारे में पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, शिव भक्त ऋषि मृकण्डु ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को इच्छानुसार संतान प्राप्त होने का वर तो दिया परन्तु शिव जी ने ऋषि मृकण्डु को बताया कि यह पुत्र अल्पायु होगा। यह सुनते ही ऋषि मृकण्डु विषाद से घिर गए।
कुछ समय बाद ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । ऋषियों ने बताया कि इस संतान की उम्र केवल १२ साल ही होगी। ऋषि मृकण्डु दुखी हो गए यह देख जब उनकी पत्नी ने दुःख का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बताई।
तब उनकी पत्नी ने कहा कि यदि शिव जी की कृपा होगी, तो यह विधान भी वे टाल देंगे। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र भी दिया । मार्कण्डेय शिव भक्ति में लीन रहते।
जब समय निकट आया तो ऋषि मृकण्डु ने पुत्र की अल्पायु की बात पुत्र मार्कण्डेय को बताई। साथ ही उन्होंने यह दिलासा भी दी कि यदि शिवजी चाहेंगें तो इसे टाल देंगें। माता-पिता के दुःख को दूर करने के लिए मार्कण्डेय ने शिव जी से दीर्घायु का वरदान पाने के लिए शिव जी आराधना शुरू कर दी।
मार्कण्डेय जी ने दीर्घायु का वरदान की प्राप्ति हेतु शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप करने लगे। समय पूरा होने पर मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए यमदूत आए परंतु उन्हें शिव की तपस्या में लीन देखकर वे यमराज के पास वापस लौट आए और यमराज को पूरी बात बताई।
तब मार्कण्डेयके प्राण लेने के लिए स्वयं साक्षात यमराज आए। यमराज ने जब अपना पाश जब मार्कण्डेय पर डाला, तो बालक मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए। ऐसे में पाश गलती से शिवलिंग पर जा गिरा। यमराज की आक्रमकता पर शिव जी बहुत क्रोधित हुए और यमराज से रक्षा के लिए भगवान शिव प्रकट हुए।
इस पर यमराज ने विधि के नियम की याद दिलाई। तब शिवजी ने मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान देकर विधान ही बदल दिया । साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि जो कोई भी इस मंत्र का नियमित जाप करेगा वह कभी अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा।